हजार बार कोसना

खोजा को कुछ काजियों के फैसले सुनाने के ढंग से बहुत शिकायत थी।

वे ऐसे काजी थे जो मामले को पूरा सुने बिना ही फैसला सुना देते थे। कोई कसूरवार है या नहीं, यह जानना गवारा नहीं करते थे।

हालंकि खोजा की कोशिश यही रहती थी कि वह जब भी किसी काजी के पास किसी गरीब का मुकदमा लेकर जाये तो उस गरीब के साथ अन्याय न होने पाये, लेकिन ऐसे काजियों की अदालत में खोजा को मायूसी ही हाथ लगती थी।

उस गरीब आदमी से ज्यादा दुखी तब खोजा होता है।

एक बार तो खोजा पर बहुत बुरी बीती। खोजा सड़क पर चला रहा था। अचानक एक पत्थर से ठोकर लगी और वह मुहं के बल जा गिरा। खोजा चिढ कर उस पत्थर से बोला, उल्लू के पट्ठे मैं तुझे हजार बार कोसता हूँ।

संयोग से एक रईस का लड़का वहां से गुजर रहा था। उसने सोचा कि खोजा उसी को कोस रहा है। घर पहुंचकर उसने अपने पिता से कहा, रस्ते में खोजा ने मुझे बेवजह हजार बार कोसा है।

यह सुनते ही उसके रईस पिता को तैश आ गया। उसने न तो अपने बेटे से पूरा वाकया सुनना जरूरी समझा, न खोजा से जाकर पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया ? वह हवेली से निकल सीधा काजी की अदालत में पहुंचा और खोजा की खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी।

काजी ने अपनी आदत के अनुसार रईस की शिकायत सुने बिना ही खोजा को बुलाने संदेशवाहक भेज दिया।

खोजा खाजी की अदालत में पहुंचा। उसके पहुंचते ही बिना खोजा का पक्ष सुने काजी ने उस पर चांदी के आधे सिक्के का जुर्माना कर दिया।

खोजा अपनी याद में उस रईस से कभी मिला तक नहीं था, इसलिए उसकी शान में कोई गुस्ताखी होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था। इसलिए खोजा ने पूछा, मेरा कसूर क्या है ?

रईस ने बताया, तुमने आज सुबह मेरे बेटे को किसी बात के लिए हजार बार कोसा है।

ओह! तो ये बात है। पर मैंने तो पत्थर को कोसा था। खोजा ने याद करते हुए कहा।

हम कुछ नहीं सुनना चाहते। तुम फौरन जुर्माना भरो। काजी ने खोजा को आदेश दिया।

खोजा ने जेब से निकल कर चांदी का एक सिक्का मेज पर फेंक दिया और काजी से बोला, हजार बार कोसने का जुर्माना अगर सिर्फ आधा चांदी का सिक्का है तो मैं पूरा सिक्का देता हूँ। बकाया रकम मुझे लौटाने की जरूरत नहीं हैं। इसके बदले मैं मैं हजार बार तुम्हें कोसता हूँ।